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हमारी डिजिटल क्लास बिल्कुल फॉर्मल, फैकल्टी वेल ड्रेस्ड व छात्र यूनिफाॅर्म में टिफिन और बैग के साथ बैठते हैं
कोरोना वायरस शैक्षणिक जगत के लिए एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह नए अवसर भी दे रहा है। अब पेरेंट्स पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले बच्चों के लिए देश में ही अच्छे संस्थान तलाश रहे हैं। लॉकडाउन की अवधि में सेज ग्रुप अच्छी फैकल्टीज को नौकरियां देने के साथ अपने प्लेटफॉर्म को इंटरनेशनल यूनिवर्सिटीज से प्रतिस्पर्धा योग्य बना रहा है। ग्रुप को भरोसा है कि अगस्त से स्कूल-कॉलेज में कक्षाएं शुरू हो जाएंगी। 1 सितंबर से नए एडमिशन लेने वाले छात्रों की कक्षाएं शुरू हो सकती हैं। यह बातें सेज ग्रुप के चेयरमैन संजीव अग्रवाल ने भास्कर से विशेष चर्चा में कहीं।
हम अच्छी फैकल्टीज को नौकरियां देने के साथ अपने प्लेटफॉर्म को इंटरनेशनल यूनिवर्सिटीज से प्रतिस्पर्धा के योग्य बना रहे
सेज जैसी शैक्षणिक संस्थाओं के लिए कोरोना काल कितनी बड़ी चुनौती है? आप कैसे सामना कर रहे हैं? सेज ग्रुप ने इस चुनौती को स्वीकारा है। हम काफी समय से पेपरलेस काम कर रहे थे। हमने इसे आगे बढ़ाया। डिजिटल क्लास शुरू की गईं, जो दूसरों से अलग हैं। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि अध्यापक और छात्र क्लास रूम की तरह तैयार होकर आएं। छात्र यूनिफॉर्म में हों। वे बैग लेकर बैठें। फैकल्टीज भी उसी तरह फॉर्मल ड्रेसेस पहने, जो वे फिजिकल क्लास में पहनकर आते हैं। इसकी ऑनलाइन मॉनिटरिंग होती है। जो ऐसा नहीं करता उसे फटकार लगाई जाती है। बच्चों को असाइनमेंट और होमवर्क दिए जाते हैं। वे पूरे हों, यह सुनिश्चित हो रहा है। पेरेंट्स से भी चर्चा होती है। पढ़ाई के लिए जरूरी अनुशासन का पालन तो होना ही चाहिए। बच्चों को पेंटिंग, सिंगिंग और डांसिंग जैसी सॉफ्ट स्किल सिखाई जाती है। मोटिवेशन के लिए सेज टॉक हो रहे हैं। इसमें नामचीन मोटिवेशनल गुरुओं को लाइनअप किया जा रहा है।
इस बार बच्चे समर कैंप और क्लासेस मिस कर रहे हैं, इसके लिए सेज क्या कर रहा है? हम सेज समर स्कूल में डिजिटल लर्निंग दे रहे हैं। इसमें सेज ग्रुप की दो यूनिवर्सिटीज, इंजीनियरिंग कॉलेज, सागर इंटरनेशनल स्कूल के अतिरिक्त दूसरी संस्थाओं और शहरों के बच्चे भी सहभागिता कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य समर स्कूल में 1 लाख लोगों को डिजिटली लिट्रेट करने की है। इसमें हम पेरेंट्स और दूसरे आयु समूह के लोगों को भी शामिल कर रहे हैं। हमने लॉकडाउन के 21 दिन में अपने छात्रों और उनके पेरेंट्स के लिए 21 चैलेंज दिए। इससे हमें फैकल्टीज को जोड़े रखने में सफलता मिल रही है।
कोरोना संकट से उबरने के लिए सरकार को किस तरह से मदद करनी चाहिए? सरकार भले कोई राहत पैकेज न दे, लेकिन निजी शैक्षणिक संस्थाओं को काम करने की ज्यादा आजादी दे। ज्यादा नियम और कानून उन पर न लादें। हम इन मुश्किलों से उबर जाएंगे। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। हमारे 3 इंजीनियरिंग, 3 एमबीए व 2 फार्मेसी के कॉलेज हैं। दो यूनिवर्सिटीज हैं और दो सेज इंटरनेशनल स्कूल हैं। 18 हजार छात्र-छात्राएं इनमें अध्ययनरत हैं। हमने कोरोना काल के बाद होने वाले बदलाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। अब हमारे क्लास रूम में 60 की जगह 30 बच्चे ही बैठेंगे। एक बैंच पर एक ही बच्चा बैठेगा। इसके लिए ज्यादा फैकल्टीज की जरूरत होगी। हम भर्तियां कर रहे हैं।